बुधवार, 12 मई 2010

भारत के मावोवादियों की विचारधारा क्रन्तिकारी नहीं , अराजकतावादी है -- रामजी राय

कौशल किशोर

नक्सलवाद क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट धारा है जो समाज के का्रन्तिकारी रूपान्तरण के लिए शोषित, उत्पीड़ित और मेहनतकश जन समुदाय के लिए जुझाारू संघर्ष चलाने वाली घारा के रूप में जानी जाती है। यह केवल हथियारबन्द संघर्ष का वाद नहीं है जैसा कि प्रचारित किया जाता है। यदि ऐसा होता तो शासक वर्ग अपनी विशाल सैन्य ताकत के बल पर उसे कभी का खत्म कर दिया होता। अपनी क्रान्तिकारी रणनीति और कार्यनीति के बूते ही वह आगे बढ़ी है और जनता के कठिन कठोर संघर्ष के जरिये उसके अन्दर क्रान्ति का स्वप्न जगाये हुए है।

यह विचार ‘समकालीन जनमत’ के प्रधान सम्पादक रामजी राय ने व्यक्त किये। वे ‘भारत में माओवाद, राज्य और कम्युनिस्ट आन्दोलन’ विषय पर आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे। इसका आयोजन लेनिन पुस्तक केन्द्र ने कार्ल मार्क्स जयन्ती के अवसर पर उŸार प्रदेश प्रेस कलब में किया। इस मौके पर प्रसिद्ध मार्क्सवादी चिन्तक व ‘लिबरेशन’ के सम्पादक अरिन्दम सेन की पुस्तक ‘‘भारत में ‘माओवाद’, राज्य और कम्युनिस्ट आन्दोलन’ का लोकार्पण भी हुआ। लेनिन पुस्तक केन्द्र ने इस पुस्तक हिन्दी में प्रकाशन किया है।

रामजी राय का कहना था कि भारत में माओवादी लोकतांत्रिक संघर्ष और इस प्रक्रिया से बिल्कुल अलग-थलग महज हथियारबन्द कार्रवाई तक सीमित हैं। उनके अनुसार इस देश में क्रान्तिकारी परिस्थिति हमेशा मौजूद है इसलिए सशस्त्र संघर्ष के लगातार हालात बने हुए हैं। इतने विशाल व विविधतापूर्ण देश में माओवादियों की कार्रवाई क्रान्तिकारी विचार व व्यवहार पर आधारित न होकर अन्ततः यह अराजकतावाद है। आज राज्य और माओवादी जिस वन ट्रैक पॉलिसी पर चल रहे हैं वहाँ राजनीति पीछे छूट गई है। राज्य का चरित्र दमनकारी बन चुका है और जनता को अपने छाटे-छोटे अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। आज राज्य दमन के विरुद्ध जन प्रतिवाद व जन प्रतिरोध भी हो रहा है लेकिन माओवादियों के द्वारा जारी अविवेकपूर्ण व आतार्किक हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता है। माओवादियों की कार्रवाई जन पहलकदमी को अवरुद्ध करती है और अन्ततः क्रान्ति को नुकसान ही पहुँचाती है।

सेमिनार का संयोजन करते हुए जन संस्कृति मंच के संयोजक व लेनिन पुस्तक केन्द्र के अध्यक्ष कौशल किशोर ने कहा कि जिनकी व्यवस्था आतंक के बल पर चलती है, उन्हें हमेशा अपने आसपास आतंकवादी ही नजर आते हैं। यह एक राजनीतिक मनोरोग है। अमेरीकी सŸाा प्रतिष्ठान इस मनोरोग का गंभीर रूप से शिकार रहा है। अब भारतीय व्यवस्था के सिद्धान्तकारों व प्रबन्धकों ने इस मनोरोग का ‘आयात’ अमेरीका से कर लिया है। जैसै-जैसे यह व्यवस्था साम्राज्यवादपरस्त हुई है, राज्य का चरित्र दमनकारी व लोकतंत्र विरोधी होता चला गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर चलाये जा रहे ‘आपरेशन ग्रीनहंट’ इसी का ताजा उदाहरण है।

सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए कम्युनिस्ट नेता जयप्रकाश नारायण ने कहा कि राज्य व्यवस्था ने विकास का जो मॉडल अपनाया है, उसने विशाल बहुसंख्यक जनता को विस्थापन के लिए मजबूर कर दिया है। हमारी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा पिछड़ेपन व अर्द्धसामन्ती सम्बन्धों की जकड़न में है। कॉरपोरेट सेक्टर लगातार फल-रहा है, वहीं आम लोगों की दशा दयनीय होती जा रही है। शोषण, दोहन व अत्याचार की इस प्रक्रिया को चुनौतियाँ भी मिल रही हैं। जन उभार और जगह जगह से लोकतांत्रिक संघर्ष फूट रहे हैं। कम्युनिस्ट आन्दोलन को इन संघर्षों का नेतृत्व देने की चुनौती है। माकपा के सामाजिक जनवादी या माओवादियों के अराजकतावादी रास्ते से कम्युनिस्ट आंदोलन इस चुनौती का मुकाबला नहीं कर सकता है।

इस मौके पर मानवाधिकार आन्दोलन से जुड़े एस आर दारापुरी, ट्रेड यूनियन नेता ओ पी सिन्हा, लेखक चन्द्रेश्वर, सामाजिक कार्यकर्ता जानकी प्रसाद गौड़ आदि ने भी अपने विचार रखे। वक्ताओं का कहना था कि जैसे.जैसे राज्य प्रणाली बाजार के साथ जुड़ती जा रही है, वैसे-वैसे व्यापक जनता विकास और लोकतंत्र के दायरे से बाहर ढ़केली जा रही है। बिहार, झारखण्ड, छŸाीसगढ़, ओड़ीशा जैसे राज्यों में बहुसंख्यक जनता गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की चपेट में है। इसके विरुद्ध जो जन संघर्ष चल रहा है, उसे दबाने में राज्य पूरी तरह से सक्रिय है। जन प्रतिवाद व लोकतांत्रिक संघर्षों के दमन का ‘माओवाद’ हथियार बन गया है। लेनिन पुस्तक केन्द्र के प्रबन्धक गंगा प्रसाद ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।

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