बुधवार, 16 मार्च 2016

ज़ाहिदा हिना की किताब - युद्ध: आत्महत्या का रास्ता

ज़ाहिदा हिना की किताब - 
युद्ध: आत्महत्या का रास्ता 

कौशल किशोर

कौन चाहता है युद्ध ? कोई नहीं। परन्तु युद्ध हकीकत है जैसे दुनिया को आगे बढ़ने के लिए जरूरी है। आधुनिक काल में युद्ध विश्व बाजार पर कब्जे के लिए होड़ व पूंजी की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा की देन है। इसने युद्ध की विभीषिका को पैदा किया है। इसकी वजह से पिछली सदी में दो विश्व युद्ध हुए। यह महाविनाश का कारण बना। कई देश बर्बाद-तबाह हुए। लाखों लोग शिकार हुए। दुनिया में अमन कायम हो, विवादों का हल वार्ता, सुलह, समझौते से हो, बहुत सारे उपाय हुए फिर भी युद्ध होते रहे। युद्ध लिप्सा खत्म नहीं हुई। आज फिर दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी है। वर्तमान समय में आतंकवाद जिस तरह वैश्विक परिघटना के रूप में हमारे सामने है, उसने इस खतरे को और बढ़ाया है। बीसवीं सदी हो या इक्कीसीं सदी कभी ऐसा वक्त नहीं रहा जब दुनिया के किसी हिस्से में युद्ध न चल रहा हो। फिर शीत युद्ध तो हमेशा जारी रहा है जो प्रत्यक्ष युद्ध से किसी मायने में कम नहीं। 

युद्ध और शान्ति - सिक्के के दो पहलु की तरह हैं। जहां एक तरफ युद्धोन्माद व युद्ध लिप्सा है, वहीं दूसरी तरफ शांति के प्रयास भी होते रहे हैं। शान्ति के पक्ष में माहौल तैयार करने में लेखकों व कलाकारों की बड़ी भूमिका रही है। यहां तक कि लेखकों ने युद्ध के खिलाफ शान्ति के लिए अपनी शहादतें भी दी हैं। इस विषय पर कई कृतियों की रचना हुई। इनके माध्यम से न सिंर्फ शन्ति का संदेश पहुंचाया गया बल्कि युद्ध के खिलाफ जनमत तैयार करने में इनकी भूमिका रही हैै। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान पाब्लो पिकासे की कलाकृति ‘गुयेर्निका’ आज भी युद्ध के खिलाफ सबसे बड़ी कला अभिव्यक्ति के रूप में जानी जाती है। टाल्सटाय का उपन्यास ‘युद्ध और शान्ति’ विश्व प्रसिद्ध कृति है। 

यह बात शीशे की तरह साफ है कि युद्ध से जो इच्छित हासिल करने की निहित आकांक्षा रही है, वह तो कभी पूरी नहीं हुई लेकिन इसने जो तबाही व बर्बादी मचाई, उसका शिकार मानव जीवन, प्रकृति और उसकी आगे की पीढियों को होना पड़ा। इसीलिए युद्ध अन्ततः मानव जाति को खुदकुशी की ओर ले जाता है, यह आत्महत्या का रास्ता है। इसी सच्चाई को सामने लाती है जाहिदा हिना की किताब - ‘युद्ध: यह आत्महत्या का रास्ता है’। जाहिदा हिना कथाकार ही नहीं, सोशल व कल्चरल एक्टिविस्ट भी हैं जो पाकिस्तान में शान्ति के पक्ष में युद्ध विरोधी अभियान ‘क़लम बराए अमन’ की सक्रिय कार्यकर्ता के बतौर सक्रिय हैं। जाहिदा हिना की इस किताब का अनुवाद हिन्दी के जाने माने कथाकार व अनुवादक शकील सिद्दीकी ने किया है। इसमें उनकी भूमिका भी है। वहीं, अरुंधती राय की युद्ध खासतौर से परमाणु युद्ध के बढ़ते खतरे, उसका सांप्रदायिकीकरण पर छोटी-छोटी टिप्पणियां भी है। 
जहिद हिना ने अपनी किताब ‘अवाम की हिमायत में जंगी जुनून के खिलाफ संघर्षरत तमाम साथियों को’ समर्पित किया है और स्वयं भी उन्हीं की सहयोद्ध की तरह जंग की संस्कृति के खिलाफ अमन के पक्ष में अपनी आवाज बुलन्द करती हैं। जंग कैसे अवाम के खिलाफ है, इसके वैचारिक व राजनीतिक आधार की पड़ताल करती हैं। फिर आज तो एटमी युद्ध का बड़ा खतरा है। हिरोशिमा और नगासाकी जिन पर 1945 में परमाणु बम गिराये गये थे और जिसे अमेरिका द्वारा ‘नन्हा लड़का’ की संज्ञा दी गई थी। वह आज जवान हो चुका है, दैत्याकार। किताब में इस तथ्य को सामने लाया गया है कि युद्ध इस महाद्वीप में जिस युद्धोन्मुखता व युद्धोन्माद पैदा कर रहा है उसी के तहत पाकिस्तान के शासकों की राजनीति व परमाणु कार्यक्रम भारत के खिलाफ तैयार किये जाते हैं। इसी तरह की नीति हिन्दुस्तान के शासकों की भी है। जबकि दोनों मुल्कों का अवाम अमन पसन्द है। वह युद्ध नहीं दोस्ती चहता है, भाईचारा चाहता है। दोनों के बीच सांस्कृतिक एकता है। पाकिस्तान और हिन्दुस्तान दोनों विकासशील देश है। गरीबी, भुखमरी दोनों के अवाम की आम समस्या है। 

जहिद हिना इस तथ्य की सामने लाती हैं कि जो पाकिस्तान कटोरा लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सामने हमेशा खड़ा रहता है, उसने अपने परमाणु हथियारों से संबंधित परीक्षणों और तैयारी पर छ खरब रुपये व्यय किये हैं। वहीं, सिंध के अकालग्रस्त क्षेत्र के टी बी बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए 25 करोड़ रुपये उपलब्ध नहीं कर सकी। ऐसे में लोगों के जीवन की कीमत पर युद्धोन्माद तथा ‘हम घास खायेंगे मगर एटम बम जरूर बनायेंगे’ जैसा उन्माद कहां तक जायज है ? इसी तरह का उदाहरण वे हिन्दुस्तान के संबंध में प्रस्तुत करती हैं कि भारत इस समय संसार का सर्वधिक निरक्षर देश है। करोड़ों को पीने के लिए साफ पानी तथा सत्तर प्रतिशत आबादी को सफाई की मौलिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। दुनिया भर के एक तिहाई अत्यन्त निर्धन भारत में बसते हैं। उनकी दैनिक आमदनी एक डालर से भी कम है। मानव विकास के सूचकांक की दृष्टि से 174 देशों में भारत का स्थान 135 वां है। गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हिन्दुस्तान का 6 प्रतिशत वार्षिक दर से रक्षा बजट में लगातार वृ़िद्ध करना कहां तक उचित है ? जाहिदा हिना इन सवालों से रू ब रू हैं।

किताब मे जाहिदा हिना के ‘दिल का क्या रंग करूं ?’, ‘समाज में निराज और जंगी जुनून’,ं ‘यह आत्महत्या का रास्ता है’, ‘आत्मा की आवाज’ और ‘एटमी हथियार क्या हमारी रक्षा कर सकते हैं’शीर्षक से पांच आलेख है। इन लेखों के माध्यम से उनकी जो चिन्ता सामने आती है, वह उन्हीं के शब्दों में ‘मैं पाकिस्तानी शहरी होने के साथ ही उपमहाद्वीप की भी शहरी हूं। मेरे लिए कराची, कोलकता और कानपुर में, लाहौर और लखनऊ में, दिल्ली और पेशावर में कोई फर्क नहीं ! यह उपमहाद्वीप के शहर हैं, मैं इन सबमें रहती हूं और ये सारे शहर मेरे अन्दर आबाद हैं ! गौरी चले या अग्नि, निशाना उपमहाद्वीप की कोई भी बस्ती, कोई भी वीरान बने, हलाकत यानी हत्या मेरी होगी, किसी हिन्दू, किसी मुसलमान, किसी सिख या किसी मर्द-औरत, बच्चे-बूढ़े, किसी कट्टरपंथी या किसी नास्तिक के रूप में मेरा ही खून बह रहा होगा।’ इस तरह किताब के माध्यम से जिस हकीकत का बयान है, वह इस महाद्वीव की सच्चाई है जिससे दोनों मुल्क और यह महाद्वीप परेशान है, तबाह-बर्बाद हो रहा है। अर्थात जंग आत्महत्या का, दोनों मुल्कों को अपने को नष्ट कर देने वाला रास्ता है। अन्ततः इससे आम नागरिकों को कुछ मिलने वाला नहीं है। इससे उनकी जिन्दगी का अंधेरा और गहरा ही होगा। 
परिशिष्ट के अन्तर्गत डॉ ताहिरा एस खान का ‘जंग नहीं चाहतीं पाकिस्तान की औरतें’ तथा आई ए रहमान का ‘उम्मीद का एक सफर’ दो आलेख हैं। देश का बंटवारा और कश्मीर विवाद ऐसी समस्याएं रही है जो दोनों देशों के बीच नफरत की भावना को फैलाती हैं तथा युद्ध के लिए उकसाती हैं। इनका इस्तेमाल दोनों मुल्कों के शासक करते रहते हैं। इन्हें आधार बनाकर दोनों मुल्कों में राजनीति की जाती है। इन मुल्कों में जो चुनाव होते हैं, उनमें यह बड़ मुद्दा बनाया जाता है। 1947 का विभाजन दोनों मुल्कों के लिए ऐसी त्रासदी है जिसने स्थाई तनाव को पैदा किया है जिसका खामियाजा दोनों मुल्कों के अवाम को भुगतना पड़ रहा है। । युद्ध हो या न हो लेकिन अप्रत्यक्ष युद्ध जैसी स्थिति हमेशा बनी हुई है। नतीजा है हर साल रक्षा बजट में गैरजरूरी बढ़ोतरी। पृथ्वी, अग्नि और त्रिशूल बने या गौरी, शाहीन और अब्दाली दागे जाय, कौन बनेगा इनका निशाना ? आखिर यह किसकी कीमत पर हो रहा है ? जाहिदा हिना पुरजोर तरीके से कहती हैं कि ऐसा करके हम न सिर्फ मानवता की बल्कि अशोक महान और महात्मा गांधी के आदर्शों और अहिंसा के दर्शन की भी हत्या कर रहे हैं। इस किताब में ‘बंटवारें को भुलाकर अमन के लिए एक हों’ एक अवधारणा पत्र भी शामिल है। इसी तरह जम्मू और कश्मीर पर संयुक्त वक्तव्य’ भी है। जाहिदा हिना की पीड़ा एक सृजनशील रचनाकार की है। उनका मूल संदेश है कि धार्मिक विमर्श से बाहर आकर एक ऐसी जगह बनाने की जरूरत है जहां व्यक्ति केन्द्रित,  तार्किक, वस्तुपरक, वैज्ञानिक विचार विमर्श करने की संस्कृति पनप सके।

युद्ध इस महाद्वीप में सांम्राज्यवादियों की साजिश, सत्ता के निहित राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति का माध्यम रहा है और आज भी है जो जनविरोधी और मनुष्य विरोधी है। इसके खिलाफ दोनों मुल्कों के अमन पसंद लोगों का जाग्रत होना तथा जंग के विरुद्ध आंदोलनात्मक अभियान चलाना जरूरी है। जाहिदा हिना की यह किताब इसी अभियान का हिस्सा है जो जंग के विरुद्ध अमन के लिए लोगों को तैयार करती है। इस मायने में यह अत्यन्त महत्वपूर्ण, जरूरी व पठनीय किताब है जिसे पढ़ा जाना चाहिए, दूसरों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। किताब की कीमत जरूर ज्यादा है। यदि इसका पेपर बैक संस्करण छपे तो यह आम लोगों तक सस्ते में पहुंच सकता है।  

युद्व: यह आत्महत्या का रास्ता है
लेखिका: जाहिदा हिना, हिन्दी अनुवाद: शकील सिद्दीकी
शिल्पायन पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली , मूल्य - 250.00